नवरात्रि के पहले दिन पढ़े Maa Shailputri Vrat Katha, इस व्रत कथा के श्रवण से होगा सुख-समृद्धि का आगमन
आज से शारदीय नवरात्रि का आरंभ हो चुका है।हर कोई श्रद्धा भाव के साथ यह पावन पर्व मना रहा है। और आज नवरात्रि का पहला दिन है इस दिन मां शैलपुत्री का पूजन किया जाता है। बहुत से लोग नवरात्रि के व्रत भी रखते हैं लेकिन जो लोग व्रत नहीं कर पाते वे केवल हर रोज कथा पढ़ लें या सुन लें तो ही उनके भाग्य खुल जाते हैं।जो भक्त मां शैलपुत्री की पूजा करता है वह भयमुक्त रहता है। इसके साथ उसे शांति, यश, कीर्ति, धन, विद्या और मोक्ष की प्राप्ति होती है। चलिए जानते हैं आज पहले दिन मां शैलपुत्री की कथा–
Maa Shailputri Vrat Katha:
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार जब प्रजापति दक्ष ने अपने घर पर यज्ञ का आयोजन करवाया तो इस यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती ने जब सुना कि उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहां जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा। माता सती ने भगवान शिव से अपने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ में जाने की अनुमति मांगी। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है। माता सती की आग्रह पर भोलेनाथ ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती ने पिता के घर पहुंचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है और राजा दक्ष भगवान शिव के बारे में अपशब्द कह रहे थे। सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा। वे अपने पति भगवान शंकर के इस अपमान को सह न सकीं। पति के इस अपमान को होते देख माता सती ने यज्ञ में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। वज्रपात के समान इस दारुण-दुःखद घटना को सुनकर शंकरजी ने क्रुद्ध हो अपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया। इसके बाद सती ने अगला जन्म शैलपुत्री के रूप में पर्वतराज हिमालय के घर लिया। इस बार वे ‘शैलपुत्री’ नाम से विख्यात हुईं। पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है।
ऐसे करें मां शैलपुत्री की पूजा:
शारदीय नवरात्रि के प्रथम दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत स्वच्छ वस्त्र धारण करें और फिर चौकी को गंगाजल से साफ करके मां दुर्गा की मूर्ति या फोटो स्थापित करें।घट स्थापना के बाद मां शैलपुत्री का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें।
इसके बाद माता को कुमकुम और अक्षत लगाएं। इसके बाद सफेद, पीले या लाल फूल माता को अर्पित करें। माता के सामने धूप, दीप जलाएं और घी के दीपक जलाएं।
फिर शैलपुत्री माता की कथा, दुर्गा चालिसा, दुर्गा स्तुति या दुर्गा सप्तशती आदि का पाठ करें इसके बाद माता की आरती उतारें और परिवार समेत माता के जयकारे लगाएं और भोग लगाकर पूजा को संपन्न करें। शाम के समय में भी माता की आरती करें और ध्यान करें।
मां शैलपुत्री को लगाएं ये भोग
मां को शैल के समान यानी सफेद वस्तुएं प्रिय हैं।इस दिन मां शैलपुत्री को गाय के घी भोग लगाने चाहिए। हिंदू धर्म में मान्यता है कि मां शैलपुत्री की पूजा करने से कुंवारी कन्याओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है।
मां शैलपुत्री पूजा का महत्व:
मां शैलपुत्री अत्यंत सरल एवं सौम्य स्वभाव की हैं।माता के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में कमल शोभा दे रहा है। मां अपने नंदी नामक बैल पर सवार होकर संपूर्ण हिमालय पर विराजमान हैं।
मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में आने वाली सभी विघ्न बाधाओं का अंत होता है तथा वैवाहिक जीवन खुशहाल व्यतीत होता है।जिन कन्याओं के विवाह का योग नहीं बन रहा है उन्हें मां शैलपुत्री की विधिवत पूजा करनी चाहिए, इससे जल्द ही उन्हें योग्य वर की प्राप्ति होगी।मां अपने भक्तों की हमेशा मनोकामना पूरी करती हैं।
शैलपुत्री माता की आरती- Maa Shailputri Aarti
जय शैलपुत्री माता मैया जय शैलपुत्री माता । रूप अलौकिक पावन शुभ फल की दाता ।।जय शैलपुत्री माता ।। हाथ त्रिशूल कमल तल मैया के साजे । शीश मुकुट शोभामयी मैया के साजे ।।जय शैलपुत्री माता ।। दक्षराज की कन्या शिव अर्धांगिनी तुम । तुम ही हो सती माता पाप विनाशिनी तुम ।।जय शैलपुत्री माता ।। वृषभ सवारी माँ की सुन्दर अति पावन । सौभाग्यशाली बनता जो करले दर्शन ।।जय शैलपुत्री माता ।। आदि अनादि अनामय तुम माँ अविनाशी । अटल अनत अगोचर अतुल आनंद राशि ।।जय शैलपुत्री माता ।। नौ दुर्गाओं में मैया प्रथम तेरा स्थान । रिद्धि सिद्धि पा जाता जो धरता तेरा ध्यान ।।जय शैलपुत्री माता ।। प्रथम नवरात्रे जो माँ व्रत तेरा धरे । करदे कृपा उस जन पे तू मैया तारे ।।जय शैलपुत्री माता ।। मूलाधार निवासिनी हमपे कृपा करना । लाल तुम्हारे ही हम द्रष्टि दया रखना ।।जय शैलपुत्री माता ।। करुणामयी जगजननी दया नज़र कीजे । शिवसती शैलपुत्री माँ चरण शरण लिजे ।।जय शैलपुत्री माता ।।
मां शैलपुत्री के पूजा मंत्र:
वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरम्। वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।। पूणेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्॥ पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता॥ प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधरां कातंकपोलां तुंग कुचाम् । कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम् ॥ या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:। ओम् शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।
FAQ
नवरात्रि के दौरान माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है: प्रतिपदा पर शैलपुत्री; द्वितीया को ब्रह्मचारिणी; तृतीया पर चंद्रघण्टा; चतुर्थी पर कुष्मांडा; पंचमी पर स्कंद माता; षष्ठी पर कात्यायनी; सप्तमी पर कालरात्रि; अष्टमी को महागौरी और नवमी को सिद्धिदात्री।